जीएसटी काउंसिल ने पिछले दिनों गेमिंग पर 28 फीसदी का टैक्स लगाने का फैसला किया था। हालांकि अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है। वहीं उद्योग संगठन 28 फीसदी जीएसटी के खिलाफ लामबंध हो गए हैं। उनका कहना है कि 28 फीसदी जीएसटी लागू होने के बाद गेमिंग उद्योग खत्म हो जाएगा और अवैध ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार बढ़ेगा। इससे सरकार को राजस्व का तो नुकसान होगा साथ ही उद्योग चौपट होने के कारण नया निवेश नहीं आएगा। वहीं कहा जा रहा है कि जीएसटी कानून में प्रस्तावित संशोधन में अभी समय लग सकता है क्योंकि संसद के मानसून सत्र के एजेंडे में यह मुद्दा शामिल नहीं है।
सरकार संसद के मानसून सत्र में डेटा संरक्षण विधेयक सहित 31 विधेयकों पर चर्चा कर सकती है, लेकिन जीएसटी कानून में संशोधन करने वाला विधेयक एजेंडे में शामिल नहीं है। लिहाजा इस पर कानून बनने में अभी समय लग सकता है। वहीं सत्र का समापन 11 अगस्त को होगा।
हालांकि इससे पहले वित्त मंत्रालय ने संकेत दिया था कि इसी सत्र में जीएसटी कानून में संशोधन के लिए विधेयक पेश किया जाएगा। जबकि जीएसटी परिषद ने पूर्ण अंकित मूल्य पर लागू कर की दर को 28% तक बढ़ाने का निर्णय लिया है, यह तब तक प्रभावी नहीं है जब तक कि संघ और राज्य सरकारें संबंधित जीएसटी अधिनियमों में संशोधन नहीं करती हैं। ऑनलाइन गेमिंग और घुड़दौड़ को जीएसटी के दायेर में लाने के लिए सीजीएसटी अधिनियम और एसजीएसटी अधिनियम की अनुसूची III में संशोधन किए जाने की आवश्यकता है।
सरकार से पुनर्विचार की मांग
रिपोर्टों से पता चलता है कि निवेशक टाइगर ग्लोबल, डीएसटी ग्लोबल, अल्फा वेव ग्लोबल, मैट्रिक्स पार्टनर्स इंडिया, टीपीजी और स्टीडव्यू कैपिटल कर दर पर पुनर्विचार करने के लिए सरकार को प्रतिनिधित्व देने की योजना बना रहे हैं। ये ड्रीम11, मोबाइल प्रीमियर लीग (एमपीएल), गेम्स 24×7 और ज़ूपी जैसे गेमिंग स्टार्टअप में कुछ शीर्ष निवेशक हैं।
केंद्र सरकार एजेंडे में इसे शामिल किए बिना भी विधेयक को फास्ट ट्रैक कर सकती है। मौजूदा मानसून सत्र में प्रारंभिक एजेंडे के अनुसार 16 कार्य दिवस हैं। अब तक, जीएसटी परिषद के सभी निर्णय केंद्र और राज्य सरकारों की कर दरों पर सहमति के साथ लिए गए थे, इस तथ्य के बावजूद कि कुछ राज्यों में विपक्ष के सहयोगियों का शासन है। लेकिन हाल ही में जीएसटी काउंसिल के फैसले के बाद बीजेपी शासित गोवा समेत कई राज्यों ने पुनर्विचार के लिए दबाव बनाने का इरादा जताया है.
टैक्स लागू करने में देरी से उद्योग को मिलेगा समय
यदि संशोधन विधेयक मानसून सत्र में चूक जाता है, तो कार्यान्वयन में देरी हो सकती है, जिससे उद्योग को कम कर व्यवस्था की पैरवी करने का मौका मिलेगा। उद्योग जगत द्वारा चिंता व्यक्त करने के बावजूद सरकार ने कहा कि लंबे विचार-विमर्श के बाद लिए गए फैसले पर कोई पुनर्विचार नहीं किया जाएगा।