पिछले हफ्ते ही कुछ रियल-मनी गेमिंग कंपनियों को वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी की तरफ से नोटिस मिलने शुरू हो गए थे। वहीं आरबीआई का नया फैसला गेमिंग कंपनियों की मुश्किलों को बढ़ा सकता है। असल में जीएसटी को लेकर भारत सरकार का यह मानना है कि इन कंपनियों पर पिछले कई सालों में जो भी टैक्स चुकाया है वह वास्तविक कर से ज्यादा है। जानकारी के मुताबिक बकाया टैक्स 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है।
वहीं माना जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक इन कंपनियों के लिए भी नया कदम उठाने जा रहा है। क्योंकि अभी तक ये कंपनियां गेटवे चार्ज लिया करती थी। लिहाजा अब आरबीआई ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्मों गेटवे पर बैन कर सकती है। असल में अभी तक आरबीआई ने जुआ और सट्टेबाजी कंपनियों को गेटवे सुविधा से प्रतिबंधित किया है। गौरतलब है कि आरबीआई ने बैंकों और फिनटेक कंपनियों की जांच को तेज किया है। असल में आरबीआई की जांच में सामने आया है कि जुआ और सट्टेबाजी प्लेटफार्मों सहित अवैध संस्थाओं को को गेटवे सेवाएं प्रदान की जा रही हैं।
कुछ ऐसा ही हाल है गेमिंग कंपनियों का
गेमिंग पर 28 फीसदी जीएसटी लगाने और अब आरबीआई द्वारा गेमिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले गेटवे को लेकर सख्ती को लेकर गेमिंग कंपनियों का हाल इस गाने की तरह है।
एग्रीगेटर और पेमेट गेटवे के लिए जारी किए गए थे गाइडलाइन
पिछले साल पेमेंट एग्रीगेटर/पेमेंट गेटवे के लिए गाइडलाइंस लागू किए जाने के बाद कई छोटे ऑपरेटर्स के लाइसेंस प्रस्तावों को खारिज कर दिया गया था। यहां तक कि पेटीएम, पेयू, मोबिक्विक और बाद में रेजरपे और कैशफ्री जैसे बड़े गेटवे के प्रस्तावों को या तो खारिज कर दिया या अस्थायी रूप से रोक दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कुछ पेमेंट गेटवे को कानूनी रूप से संदिग्ध क्षेत्रों में काम करने वाले व्यापारियों को सेवाएं प्रदान करने के लिए अतिरिक्त शुल्क लेते हुए भी पाया गया, जिसमें सट्टेबाजी लेनदेन की सुविधा भी शामिल है।