दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है, जिसमें सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (आईटी संशोधन नियम) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, क्योंकि वे ऑनलाइन गेमिंग के विनियमन से संबंधित हैं। इस मामले में अब 13 जुलाई को सुनवाई होगी।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ के समक्ष आज यह याचिका सुनवाई के लिए आई। अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा को मामले में मदद करने के लिए बुलाया और मामले को 13 जुलाई को आगे विचार के लिए सूचीबद्ध किया।
यह याचिका नोएडा स्थित एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) सोशल ऑर्गनाइजेशन फॉर क्रिएटिंग ह्यूमैनिटी ने अधिवक्ता साक्षी टिकमानी के माध्यम से दायर की है। अधिवक्ता अक्षत गुप्ता ने मामले की पैरवी की। याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि भारत का संविधान राज्य सरकार को सट्टेबाजी और जुए के मुद्दों पर कानून बनाने की विशेष शक्तियां देता है। इसलिए, आईटी संशोधन नियम केंद्र सरकार की विधायी क्षमता से परे हैं।
केंद्र सरकार ने कहा था कि एसआरबी यह सत्यापित करेंगे कि नियमों के तहत ऑनलाइन रियल मनी गेम की अनुमति है या नहीं। हालांकि, जनहित याचिका में कहा गया है कि इन एसआरबी को गेमिंग कंपनियों द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, जिनके पास समुदाय के विनियमन में निहित स्वार्थ है। याचिका में कहा गया है कि यह पूरी तरह से मनमाना, तर्कहीन और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
सरकार जिम्मेदारियों ने नहीं बच सकती है
याचिका में तर्क दिया गया है, “सरकार ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र की देखरेख और निगरानी की अपनी भूमिका से पीछे नहीं हट सकती है और निजी निकायों को अपनी जिम्मेदारी आउटसोर्स नहीं कर सकती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि ये नियम न केवल संविधान के विपरीत हैं, बल्कि ऑनलाइन गेमिंग गतिविधियों को नियंत्रित करने में भी अप्रभावी हैं, जो विस्फोटक गति से बढ़ रही हैं, खासकर लॉकडाउन और कोविड-19 महामारी के बाद।
याचिका में कहा गया है कि इसलिए, इन नियमों को अधिसूचित करने का केंद्र का निर्णय सार्वजनिक हित के खिलाफ है, सरकारी खजाने पर एक बोझ है और ऑनलाइन जुए के खतरे से निपटने में भी विफल रहेगा।