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देश में ऑनलाइन जुआ और ऑनलाइन गेमिंग के बीच कोई स्पष्ट कानूनी अंतर नहीं है। अधिकांश ऑनलाइन गेमिंग पोर्टल, जिसमें सट्टेबाजी या जुआ शामिल है ये बच्चों को लुभाने के लिए अपने ऐप्स को ‘कौशल के खेल’ के रूप में बाजार में लेकर आ रहे हैं। अभी तक केन्द्र सरकार ऑनलाइन गेमिंग को लेकर सख्त नियम तक नहीं बना सकी है। जबकि पिछले दिनों ऑनलाइन गेमिंग के जरिए धर्मांतरण का मामला महाराष्ट्र और यूपी में आ चुका है।
देश में ऑनलाइन गेमिंग बाजार वित्त वर्ष 2023-24 में $ 3 बिलियन तक पहुंचने के लिए तैयार है। 2016 में, यह $ 543 मिलियन के करीब था। रिपोर्ट के मुताबिक 2027 तक यह चार गुना बढ़कर 8.6 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। अरबों रुपये का बाजार होने के बावजूद ऑनलाइन गेमिंग को नियंत्रित करने के लिए न तो कोई ठोस नियम हैं और न ही कोई नियामक। जिसके कारण ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां अपने हिसाब से काम कर रही है और युवा पीढ़ी को अपना निशाना बना रही हैं।
भारत में 500 मिलियन गेम प्लेयर
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ऑनलाइन गेम खिलाड़ियों की संख्या साल 2022 में 507 मिलियन के करीब पहुंच गई है। इसके साथ ही भारत दुनिया में सबसे ज्यादा मोबाइल गेम प्लेयर्स वाला देश बन गया। 2021 में यह संख्या 45 करोड़ थी। अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 तक यह संख्या 70 करोड़ तक पहुंच जाएगी। यानि हर दूसरा आदमी ऑनलाइन गेमिंग में हिस्सा लेगा।
नहीं मिलता है इनाम
रिपोर्ट के मुताबिक जांच में पाया गया है कि कई गेमिंग पोर्टल्स ने जानबूझकर भुगतान तंत्र को गड़बड़ किया है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि पहली बार प्राइज मनी दी और उसके बाद खिलाड़ियों को या तो ब्लॉक कर दिया जाता है। या ऐप पर भुगतान समस्याएं दिखाकर भुगतान नहीं किया गया।
गेम खेलने में यूपी के युवा सबसे आगे
इंडिया मोबाइल गेमिंग रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, यूपी के लोग सबसे ज्यादा ऑनलाइन गेम खेलने के मामले में सबसे आगे हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पश्चिम बंगाल का स्थान है।
बच्चों पर पड़ रहा है असर
रिपोर्ट के मुताबिक ऑनलाइन गेम्स का बच्चों के व्यवहार पर काफी असर पड़ रहा है। खासकर हिंसक प्रवृत्ति वाले खेल मस्तिष्क को अधिक प्रभावित कर रहे हैं। पिछले दिनों ही महाराष्ट्र में ऑनलाइन गेमिंग के जरिए हिंदू बच्चों को मुस्लिम बनाने का मामला सामने आया है। इस मामले को लेकर पुलिस जांच कर रही है। वहीं अभी तक कई तरह के फ्राड सामने आए हैं। लेकिन नियम ना होने के कारण ये कंपनियां आसानी से कानून के शिंकजे से बाहर आ जाती हैं।
केन्द्र सरकार पर लटका है मामला
ऑनलाइन गेमिंग की श्रेणी में किन खेलों को शामिल किया जाना चाहिए, इसे परिभाषित करने का मामला अभी भी लंबित है। अभी उन्हें ‘कौशल के खेल’ और ‘अपनी किस्मत आजमाने वाले खेल’ की श्रेणी में रखा जा रहा है। इसी के आधार पर जीएसटी लगाने की बात कही गई थी। वर्तमान में ‘गेम ऑफ चांस’ पर 28 प्रतिशत और ‘कौशल के खेल’ पर 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता है।
कई राज्य बैन लगाने के पक्ष में
देश में ऑनलाइन जुआ और ऑनलाइन गेमिंग के बीच कोई स्पष्ट कानूनी अंतर नहीं है। अधिकांश ऑनलाइन गेमिंग पोर्टल, जिसमें सट्टेबाजी या जुआ शामिल है, अपने ऐप्स या उत्पादों को ‘कौशल के खेल’ के रूप में वर्णित करते हैं। ज्यादातर राज्य सरकारें ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं। तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि इन ऑनलाइन सट्टेबाजी पर बैन लगाया जाना चाहिए। लेकिन कई राज्य ऑनलाइन गेम में बैन के खिलाफ हैं। क्योंकि सरकारों को इसमें मोटा राजस्व मिल सकता है।
इन ऑनलाइन गेमों पर है विवाद
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